अंतस् प्रेरणा

चांद की शीतलता में,
संगीतमय निर्झर में,
मधुमय उपवन में,
प्रशांत-गुप्त गृह में,
खुद को भटकाना बंद करो,
मुंह छिपाना बंद करो।
जन्म तुम्हारा, छांव में
सुकोमल तन सेंकने को नहीं,
प्रचंडतम‌ रश्मि-पुंज  बनकर
प्रज्जवलित होने को हुआ है।
जन्म तुम्हारा राह की राह
ताकते, बटोही बनने को नहीं,
मशाल लिए कर में,
नवीन पथ सृजन को हुआ है।
मोहित, भ्रमित, आरोपित
कल्पनाओं से बाहर आओ।
पहचानो अपने अंतस‌ की
तरल, तरुण, अग्निमय प्रेरणा।
मापो सागर की गहराई,
मापो अंबर की ऊंचाई,
आओ अब समय आ चुका है
जान लो विस्तार अपना।
                  -हरि ओम शर्मा
                       

                   
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