संकल्प
दिशायें फिर गरज कर गा उठी है,
दिवाकर भी वही ऊर्जा बिखेरे आ रहा है।
धरा में फिर वही कंपन अनोखी उठ चुकी है,
गगन भी फिर वही ताण्डव अनोखा ला रहा है।
उठो! संजीवनी तुम तान अब छेङो क्षितिज पर,
नवल सर्जन, नवल संकल्प क्षण अब आ रहा है।
उठो! संदिप्त हो, तोङो कवच-कुंडल तिमिर का,
तेरे कौशल-परीक्षण का समय अब आ रहा है।
- हरि ओम शर्मा
अन्य रचनायें प्राप्त करें ....
Comments
Post a Comment