Skip to main content

Posts

Featured

अंतस् प्रेरणा

चांद की शीतलता में, संगीतमय निर्झर में, मधुमय उपवन में, प्रशांत-गुप्त गृह में, खुद को भटकाना बंद करो, मुंह छिपाना बंद करो। जन्म तुम्हारा, छांव में सुकोमल तन सेंकने को नहीं, प्रचंडतम‌ रश्मि-पुंज  बनकर प्रज्जवलित होने को हुआ है। जन्म तुम्हारा राह की राह ताकते, बटोही बनने को नहीं, मशाल लिए कर में, नवीन पथ सृजन को हुआ है। मोहित, भ्रमित, आरोपित कल्पनाओं से बाहर आओ। पहचानो अपने अंतस‌ की तरल, तरुण, अग्निमय प्रेरणा। मापो सागर की गहराई, मापो अंबर की ऊंचाई, आओ अब समय आ चुका है जान लो विस्तार अपना।                   -हरि ओम शर्मा                                             अन्य  रचनायें प्राप्त करें ....    १   . हे  युवा !     २   . बेरोज़गारी          ‌‌ ३. संकल्प  

Latest posts

संकल्प

बेरोजगारी

हे युवा!